आध्यात्मिकता में गहराई से रचे-बसे,

सनातन मूल्यों से मार्गदर्शित।

हज़ूर बाबा सावन सिंह जी महाराज

हज़ूर बाबा सावन सिंह जी महाराज का जन्म 27 जुलाई 1858 को गाँव जटाला (पंजाब) में एक धार्मिक सिख परिवार में हुआ। बाल्यकाल से ही उनमें गहरी आध्यात्मिक प्रवृत्ति दिखाई देती थी।

उन्होंने सिख ग्रंथों का अध्ययन किया और ईश्वर को जानने की लालसा के साथ आध्यात्मिक मार्ग की खोज शुरू की।

उन्होंने थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज, रुड़की से इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी की
और ब्रिटिश भारतीय सैन्य इंजीनियरिंग सेवा में कार्यरत रहे।
सफल पेशेवर जीवन के बावजूद, उनका मन आध्यात्मिक सत्य की खोज में ही रमा रहा।

सन 1894 में, उन्होंने बाबा जैमल सिंह जी से मढ़ी में भेंट की, जहाँ उन्हें सुरत शब्द योग की दीक्षा प्राप्त हुई जो भीतर की ज्योति और नाद पर ध्यान की साधना है।
1911 में सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन आध्यात्मिक सेवा को समर्पित कर दिया।

बाबा जैमल सिंह जी के शब्द रूप में विलीन होने के पश्चात, सन 1903 में, बाबा सावन सिंह जी ने राधा स्वामी सत्संग ब्यास के दूसरे गुरु के रूप में कार्यभार संभाला।

उन्हें श्रद्धा से “द ग्रेट मास्टर” कहा जाता है।
उन्होंने हजारों साधकों को मार्गदर्शन दिया और सदाचार, भक्ति और शब्द-साधना को परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग बताया।

उन्होंने ब्यास में डेरा बाबा जैमल सिंह की स्थापना की, जो आज एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र के रूप में जाना जाता है।

उनका जीवन विनम्रता, निस्वार्थ सेवा, और सहयोग का प्रतीक था। 1947 के विभाजन के समय उन्होंने अनेक पीड़ितों को आश्रय और सहायता प्रदान की।

बाबा सावन सिंह जी ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की,जिनमें प्रमुख हैं:

आध्यात्मिक रत्न
संतों का दर्शन

जो आज भी साधकों को प्रेरणा और दिशा प्रदान करते हैं।

2 अप्रैल 1948 को उन्होंने ज्योति जोत में विलीन होकर शाश्वत प्रकाश में एकत्व प्राप्त किया। उनकी आध्यात्मिक विरासत आज भी उनके उत्तराधिकारियों द्वारा प्रेम, भक्ति और शब्द मार्ग के रूप में जीवंत बनी हुई है।

परम संत शाह मस्ताना बलोचिस्तानी जी

परम संत मस्ताना शाह बलोचिस्तानी जी का जन्म 12 अगस्त, 1897 को बलोचिस्तान (अब पाकिस्तान) के कोटड़ा गाँव में हुआ था। जन्म के समय आपका नाम श्री खेमा मल जी था। आपके पिता का नाम श्री पिल्ला मल जी और माता का नाम श्रीमती तुलसा बाई जी था। बचपन में ही आपके पिता का देहांत हो गया, जिसके कारण आपका पालन-पोषण अत्यंत साधारण और गरीबी के माहौल में हुआ।

नौ वर्ष की आयु से ही आपके मन में आध्यात्मिकता की गहरी रुचि उत्पन्न हो गई थी। आगे चलकर आपका संपर्क डेरा ब्यास के हुज़ूर महाराज सावन सिंह जी से हुआ। हुज़ूर महाराज सावन सिंह जी ने आपको पवित्र नामदान प्रदान किया और “मस्ताना” की आध्यात्मिक उपाधि से विभूषित किया। इसी कारण आप व्यापक रूप से शाह मस्ताना जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

हुज़ूर बाबा सावन सिंह जी महाराज ने शाह मस्ताना जी को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सत्संग करने और ध्यान सिखाने का कार्य सौंपा। बाद में, हुज़ूर जी के आदेश पर, शाह मस्ताना जी ने वर्ष 1948 में सिरसा, हरियाणा में डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था निःस्वार्थ सेवा, सत्य और आध्यात्मिक जागृति।

यद्यपि आप निरक्षर थे, फिर भी आप दिव्य प्रेम और आत्मिक ज्ञान से परिपूर्ण एक महान संत थे। आपके सत्संग का अंदाज़ अत्यंत अनोखा, जीवंत और प्रभावशाली था। आप मुख्य रूप से बलोचिस्तानी बोली में प्रवचन करते थे।

18 अप्रैल, 1960 को 63 वर्ष की आयु में आप शब्द रूप में विलीन हो गए। ज्योति जोत समाने से पूर्व आपने समस्त प्रबंधन का दायित्व परम संत गुरबख्श सिंह जी को सौंप दिया।

परम संत गुरबख्श सिंह जी (मैनेजर साहिब जी)

डेरा जगमालवाली के संस्थापक | (1915 – 1998)

परम संत गुरबख्श सिंह जी, जिन्हें प्रेम और श्रद्धा से “मैनेजर साहिब जी” के नाम से जाना जाता है, का जन्म 21 नवम्बर 1915 को गाँव सलाना, ज़िला फतेहगढ़ साहिब (पंजाब) में हुआ।

उनके पिता का नाम सरदार चनन सिंह जी और माता का नाम सरदारनी हरनाम कौर जी था। दोनों ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे, और उनका जीवन आध्यात्मिक मूल्यों से भरा हुआ था जिसका गहरा प्रभाव बचपन से ही गुरबख्श सिंह जी पर पड़ा।

बाल्यावस्था में माताजी के देहांत के पश्चात, उनका पालन-पोषण मामी सरदारनी ईश्वर कौर जी ने ननिहाल में किया।

उनके नाना मुन्शी नारायण सिंह जी, डेरा ब्यास के हज़ूर महाराज सावन सिंह जी के करीबी भक्त और मित्र थे। यही संबंध उन्हें प्रारंभ से ही संतों की संगति और रूहानी वाणी से जोड़ता चला गया।

सन 1928 में, जब वे मात्र 13 वर्ष के थे, उन्हें हज़ूर महाराज सावन सिंह जी से नामदान (आध्यात्मिक दीक्षा) प्राप्त हुई यह वही क्षण था जिसने उनके जीवन की दिशा निर्धारित कर दी।

उन्होंने डी.एम. कॉलेज, मोगा से F.A. तक शिक्षा प्राप्त की।
इसके पश्चात उन्होंने नाभा रियासत में वन अधिकारी के रूप में 
और बाद में दिल्ली क्लॉथ मिल्ज में मैनेजर के रूप में कार्य किया।

1947 में, जब उनका स्थानांतरण बठिंडा से सिरसा हुआ,
तब वे परम संत शाह मस्ताना बलोचिस्तानी जी के सिंपक में आए,
जो उस समय राधा स्वामी सत्संग भवन, सिरसा में निवास कर रहे थे।

शाह मस्ताना जी की उपस्थिति और वाणी ने गुरबख्श सिंह जी को गहराई से आकर्षित किया, और वे उनके एकनिष्ठ शिष्य बन गए।

1948 में, जब शाह मस्ताना जी ने डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की,
तो गुरबख्श सिंह जी ने भी अपनी सांसारिक नौकरी त्यागकर पूर्णतः सेवा और सिमरन को समर्पित कर दिया।

फरवरी 1949 में, शाह मस्ताना जी ने उन्हें रूहानियत का आशीर्वाद प्रदान किया और “मैनेजर” की आध्यात्मिक उपाधि दी जो उनके साथ जीवन भर जुड़ी रही।

18 अप्रैल 1960 को, जब मस्ताना शाह जी शब्द रूप में विलीन हुए,
तो उन्होंने मैनेजर साहिब जी को डेरा प्रबंधन की पूर्ण ज़िम्मेदारी सौंप दी।

लेकिन जब डेरा में परिस्थितियाँ बदलने लगीं, तो उन्होंने बिना कोई विवाद या विरोध किए, चुपचाप छह वर्षों तक विभिन्न स्थानों पर सेवा और सिमरन में जीवन बिताया।

18 फरवरी 1966 को, आंतरिक आदेश और रूहानी दृष्टि से प्रेरित होकर, उन्होंने शाह मस्ताना बलोचिस्तानी आश्रम की स्थापना की,
जो आज डेरा जगमालवाली के नाम से प्रसिद्ध है।

ईंट और मिट्टी से नहीं, बल्कि भक्ति, अनुशासन, और अंतर की ज्योति से बना यह डेरा, आज हजारों साधकों के लिए सत्य की खोज और रूहानियत का आश्रय बना हुआ है।

मैनेजर साहिब जी की शिक्षाएँ भीतर के परमात्मा की अनुभूति पर केंद्रित थीं। उन्होंने हमेशा सादगी, करुणा, और आत्म-अनुशासन पर बल दिया —
और साधकों को सिमरन (ध्यान), सत्संग, और सेवा के माध्यम से जीवन रूपांतरित करने की प्रेरणा दी।

18 फरवरी 1996 को, डेरा की स्थापना के ठीक 30 वर्षों बाद, उन्होंने परम संत बहादुर चंद जी को पंजीकृत वसीयत द्वारा अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

30 जुलाई 1998 को, मैनेजर साहिब जी शब्द रूप में विलीन हो गए।
परंतु उनका आध्यात्मिक प्रकाश, उनका दृढ़ संकल्प, और उनकी जीवंत शिक्षाएँ आज भी डेरा जगमालवाली के मूल आधार के रूप में जीवित हैं।

उनका जीवन आज भी सत्य की तलाश करने वाले हर साधक के लिए
प्रेरणा, शक्ति और आंतरिक मार्गदर्शन का स्रोत बना हुआ है।

परम संत बहादुर चंद जी (वकील साहिब जी)

डेरा जगमालवाली के आध्यात्मिक गुरु (1998 – 2024)

परम संत बहादुर चंद जी, जिन्हें श्रद्धा और प्रेम से वकील साहिब जी के नाम से जाना जाता है का जन्म 31 दिसंबर 1943 को गाँव चौटाला, तहसील डबवाली, ज़िला सिरसा (हरियाणा) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम श्री मनीराम जी और माता का नाम श्रीमती मनोहरी देवी जी था।

बाल्यकाल से ही उनके भीतर राम (सच्चे सतगुरु) के दर्शन की तीव्र और अटल लालसा थी एक शांत आंतरिक पुकार, जो उनके पूरे जीवन की दिशा तय करती चली गई।

उन्होंने मेहनत और लगन के साथ दयानंद कॉलेज, हिसार से B.A. और उसके बाद पंजाब विश्व विद्यालय, चंडीगढ़ से L.L.B. की डिग्री हासिल की।

शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात वे डबवाली की अदालत में वकालत करने लगे। परंतु, जीवन की दिनचर्या और पेशेवर उपलब्धियों के बीच भी, एक आंतरिक मार्गदर्शन  उन्हें किसी गहरे और शाश्वत सत्य की ओर बुलाती रही।

1972 में, जब वे 29 वर्ष के थे, उनका संपर्क परम संत गुरबख्श सिंह “मैनेजर साहिब” जी से हुआ जो डेरा जगमालवाली के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु थे।

उसी वर्ष उन्हें मैनेजर साहिब जी से नामदान (आध्यात्मिक दीक्षा) प्राप्त हुई।
यह अनुभव उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ बन गया।

अगले कुछ वर्षों में उन्होंने सिमरन (ध्यान) और सेवा (निस्वार्थ कर्म) में लगन, गहनता और समर्पण के साथ आगे बढ़ना शुरू किया।

1977 में, उन्होंने वकालत का कार्य त्याग दिया और डेरा जगमालवाली को ही अपना स्थायी निवास बना लिया। वहां उन्होंने विनम्रता, अनुशासन, और पूर्ण समर्पण के साथ साधना का जीवन जीना आरंभ किया।

उनकी दिनचर्या नित्य सिमरन, सेवा, और गुरु के आदेशों के पालन में समर्पित रही | उनकी उपस्थिति स्वयं शब्द और भक्ति की जीवंत मिसाल बन गई।

1998 में, मैनेजर साहिब जी के शब्द रूप में विलीन होने के पश्चात,
55 वर्ष की आयु में, बहादुर चंद जी ने गुरु गद्दी संभाली।

उन्होंने डेरा की परंपरा को पूर्ण समर्पण और शांत भाव नेतृत्व के साथ आगे बढ़ाया। सच्चे साधकों को नामदान देना, आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करना, और सहज, सादगीपूर्ण जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करना —
उनके जीवन का आधार रहा।

उनका व्यक्तित्व आध्यात्मिक स्थिरता, करुणा, और आंतरिक शक्ति से परिपूर्ण था, और उनके नेतृत्व में डेरा एक सच्चे आत्मिक साधना स्थल के रूप में प्रतिष्ठित रहा।

2015 में, संत परंपरा के अनुरूप, उन्होंने महाराज बीरेंद्र सिंह जी को लिखित वसीयत द्वारा अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
यह वसीयत 2023 में विधिवत पंजीकृत की गई, ताकि डेरा का मार्गदर्शन भविष्य में भी उनकी भावनाओं और आदेशों के अनुरूप चलता रहे।

1 अगस्त 2024 को परम संत बहादुर चंद जी शब्द रूप में विलीन हो गए।

उनका जीवन प्रेमा भक्ति, अनुशासन, और आध्यात्मिक शांति का प्रतिरूप रहा और उनकी विरासत केवल उपदेशों में नहीं, बल्कि उन हज़ारों साधकों के जीवन में जीवित है, जिन्हें उन्होंने प्रेमपूर्वक मार्ग दिखाया और आत्मा को प्रकाश की ओर प्रेरित किया।

महाराज बीरेंद्र सिंह जी

महाराज बीरेंद्र सिंह जी का जन्म 21 नवंबर 1979 को श्री मियां सिंह ढिल्लों और श्रीमती संतोष देवी के घर हुआ। सन 1993 में, मात्र 14 वर्ष की आयु में, वे डेरा जगमालवाली आ गये और परम संत गुरबख्श सिंह जी “मैनेजर साहिब जी” से नामदान (आध्यात्मिक दीक्षा) प्राप्त की। यह पावन दीक्षा उनके जीवनभर की आध्यात्मिक यात्रा और डेरे में निःस्वार्थ सेवा के संकल्प की शुरुआत बनी। तब से वे स्थायी रूप से डेरे में रहकर ध्यान, अध्ययन और सेवा में लीन रहे।

डेरे में निवास करते हुए, महाराज जी ने कला स्नातक (B.A.) की डिग्री पूरी की और बाद में चौधरी देवी लाल विश्व विद्यालय से एल.एल.बी. की उपाधि प्राप्त की। पढ़ाई के साथ-साथ वे परम संत गुरबख्श सिंह जी और परम संत बहादुर चंद जी के साथ नियमित रूप से भजन-शब्द गायन में सम्मिलित होते रहे।

मैनेजर साहिब जी के ज्योति जोत समाने के बाद, महाराज बीरेंद्र सिंह जी ने 26 वर्षों तक परम संत बहादुर चंद जी के निजी सेवक के रूप में उनकी सेवा पूरी निष्ठा और समर्पण से की। सन 2002 में, उन्हें डेरा का ट्रस्टी नियुक्त किया गया, जिसमें वे परम संत बहादुर चंद जी के आध्यात्मिक दौरों के दौरान संगठनात्मक कार्यों और प्रबंध की जिम्मेदारी संभालते रहे।

सन 2015 में, परम संत बहादुर चंद जी ने लिखित वसीयत के माध्यम से महाराज बीरेंद्र सिंह जी को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित किया, जिसे 2023 में विधिवत रूप से पंजीकृत किया गया। 1 अगस्त 2024 को वकील साहिब जी के ज्योति जोत समाने के उपरांत, 45 वर्ष की आयु में, महाराज बीरेंद्र सिंह जी ने डेरा जगमालवाली की पूर्ण आध्यात्मिक जिम्मेदारी संभाली।

आज, महाराज बीरेंद्र सिंह जी, विनम्रता, भक्ति और समर्पण के साथ, डेरा की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, नामदान दे रहे हैं और सच्चे साधकों को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा भी दे रहे हैं।

सच्चा गुरु शिक्षा नहीं, जागृति देता है आत्मा को उसके स्त्रोत तक ले जाता है।

सच्चा गुरु शिक्षा नहीं, जागृति देता है आत्मा को उसके स्त्रोत तक ले जाता है।