शब्दावली – संत मत से जुड़े महत्वपूर्ण शब्दों का अर्थ

नाम दान

यह एक पवित्र दीक्षा होती है जो एक जिंदा गुरु से मिलती है, जिसमें शिष्य को एक अंतर मुखी नाम (मंत्र) दिया जाता है। इसी के माध्यम से साधना शुरू होती है और आत्मा को परमात्मा की ओर अंदर की यात्रा पर लगाया जाता है।

सिमरण

यह एक शांत और एकाग्र ध्यान की विधि है जिसमें दिए गए नाम (मंत्र) का मन में बार-बार दोहराया जाता है। इसका अभ्यास मन को स्थिर और अंदर की रौशनी व शब्द को अनुभव करने में मदद करता है।

सत्संग

एक आध्यात्मिक सभा है जहाँ संत साधको को संतमत का संदेश देते हैं, भजन-शब्द गाए जाते हैं और सभी साधक मिलकर ध्यान करते हैं और साधकों को अंतरिक ऊर्जा का अहसास और मार्गदर्शन मिलता है।

सेवा
निःस्वार्थ भाव से की गई सेवा—चाहे सतगुरु की हो, डेरा की हो या साधकों की। इसमें किसी स्वार्थ की भावना नहीं होती, यह आत्मा की विनम्रता और आध्यात्मिक प्रगति का साधन है।
डेरा
एक आध्यात्मिक स्थल या केंद्र जो किसी संत द्वारा स्थापित किया गया हो, जहाँ साधक ध्यान, सेवा और मार्गदर्शन के लिए एकत्र होते हैं।
संत मत

यह संतों द्वारा सिखाया गया वह मार्ग है जिसमें सीधी आत्मिक अनुभूति पर ज़ोर दिया जाता है—अंदर की रौशनी और शब्द के ध्यान के माध्यम से परमात्मा से जुड़ने का रास्ता बताया जाता है।

रूहानियत
यह आत्मिक जागरूकता या चेतना होती है जो गुरु की कृपा और नामदान के माध्यम से प्राप्त होती है। इसमें भीतर से बदलाव आता है।
शब्द
सत्संग में गाए जाने वाले भक्ति गीत या पवित्र रचनाएं जो आत्मा को ऊँचा उठाती हैं और ध्यान को मजबूत करती हैं।
ज्योति जोत

यह शब्द तब प्रयोग होता है जब कोई महापुरुष या गुरु इस संसार से शरीर रूप से विदा लेते हैं और आत्मिक रूप में रौशनी में लीन हो जाते हैं। इसका अर्थ है—सतगुरु का आध्यात्मिक रूप में निरंतर उपस्थित रहना।