रूहानी यात्रा के माध्यम से आत्मा को जगाना — यही डेरा जगमालवाली का मुख्य उद्देश्य है। ईश्वर का स्मरण (सिमरन), ध्यान, और निस्वार्थ सेवा के रास्ते पर चलकर, हम साधकों को आत्म पवित्रता, शांति और आत्मिक अनुभव की ओर मार्गदर्शन देते हैं।
हमारा उद्देश्य है कि हर व्यक्ति को शरीर और संसार से परे उस शाश्वत सत्य से जोड़ा जाए, जो हमारे अंदर सदा से विद्यमान है। रूहानियत की परंपरा में गहराई से रचा-बसा, यह मार्ग सिखाता है कि कैसे अहंकार, माया और भौतिक विकर्षणों से ऊपर उठकर हम प्रेम, विनम्रता और भक्ति के माध्यम से परमात्मा से जुड़ सकते हैं।
एक ऐसा आध्यात्मिक आश्रय बनाना, जहाँ हर दिल में रूहानियत की रौशनी जगमगाए। हम ऐसा संसार देखते हैं जहाँ लोग आपसी प्रेम, समझदारी और भाईचारे के साथ जिएँ और हर जीवन आत्म-जागृति और परमात्मा के स्मरण से प्रेरित हो।
डेरा जगमालवाली का लक्ष्य है एक ऐसा वातावरण बनाना जहाँ आध्यात्मिक अनुशासन, समानता, और सेवा भाव के माध्यम से हर व्यक्ति को ईश्वर से जुड़ने की शांति और गहराई का अनुभव हो सके। हम चाहते हैं कि यह डेरा आने वाली पीढ़ियों के लिए भक्ति, मार्गदर्शन और आत्मिक शांति का स्रोत बना रहे।
डेरा जगमालवाली, जिसकी स्थापना सन् 1966 में परम संत गुरबख्श सिंह ” मैनेजर साहिब” जी ने की थी, जो संतों की सनातन रूहानी परंपरा और संत मत की शिक्षाओं पर आधारित है।
यहाँ का मार्गदर्शन उन सच्चे साधकों के लिए है जो आत्मिक जागरूकता, आत्मबोध, और आत्म शांति की तलाश में हैं। डेरा की शिक्षाएँ सिमरन (ध्यान), सत्संग (आध्यात्मिक प्रवचन) और सेवा (निस्वार्थ कर्म) के माध्यम से
व्यक्ति को बाहरी दुनिया की उलझनों से हटाकर अंदर की ओर मोड़ने में सहायता करती हैं।
नाम दान (दीक्षा) — आत्मिक मार्ग की शुरुआत नाम दान से होती है — जहाँ मौजूदा गुरु महाराज बीरेंद्र सिंह जी साधको को आत्म ध्वनि (शब्द) से जोड़ते हैं और सिमरन (ध्यान) की विधि का मार्गदर्शन भी करते हैं।
नाम दान केवल एक शुरुआत ही नहीं, बल्कि यह सत्य, शुद्धता और परमात्मा के प्रति प्रेमपूर्ण जीवन जीने का संकल्प होता है।
सिमरन (ध्यान) ईश्वर के पवित्र नाम का मौन में किया गया जप है जो मन को शांत और एकाग्र करता है, और आत्मा को परमात्मा से सीधा संबंध बनाने का मार्ग खोलता है।
सत्संग (आध्यात्मिक प्रवचन ) महाराज जी द्वारा दिए जाने वाले प्रवचन, जिनमें संतों की शिक्षाओं को सााँझा किया जाता है। जो संगतें साधकों को अनुशासन में रखने, सत्य को समझने और आत्मिक मार्ग पर टिके रहने की प्रेरणा देती हैं।
सेवा (निस्वार्थ कर्म)
बिना किसी स्वार्थ या मान की इच्छा के किया गया कार्य — चाहे डेरा में हो या समाज में सेवा हमें विनम्रता, समर्पण और हृदय को पवित्र करने की ओर ले जाती है और आत्मा को गुरुकृपा पाने योग्य बनाती है।
अनुशासित जीवनशैली – साधना की नींव
इन सभी अभ्यासों को सहारा देने के लिए साधकों से अपेक्षा की जाती है कि वे नैतिक पवित्रता, संयमित और सादा जीवन जीएँ:
पूर्ण शाकाहारी भोजन
मांस, शराब, तंबाकू और अन्य नशों से दूर रहना ईमानदारी, करुणा और विनम्रता के साथ जीना यह जीवनशैली ध्यान को गहराई देती है और आत्मा को अंदर की यात्रा के लिए तैयार करती है।
आज भी वही रूहानी परंपरा जीवित है महाराज बीरेंद्र सिंह जी के प्रेमपूर्ण मार्गदर्शन में, डेरा आज भी उसी भक्ति, सादगी और ध्यानपूर्ण जीवन के पथ पर आगे बढ़ रहा है।
वे दीक्षा (नाम दान) और निरंतर आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं —
ताकि साधक इस यात्रा में स्थिरता और स्पष्टता पा सकें। डेरा जगमालवाली में सभी पृष्ठभूमि और धमगजविेष या विश्वासों से आए हर एक सच्चे साधक का स्वागत है।
यह मार्ग किसी बाहरी पहचान से नहीं जुड़ा, बल्कि भीतर के बदलाव और परमात्मा से जुड़ाव की ओर ले जाता है। गुरुओं की परंपरा और शिक्षाओं को जानने के लिए देखें – [हमारे गुरुजन]
डेरा जगमालवाली की स्थापना सन 1966 में परम संत गुरबख्श सिंह जी (मैनेजर साहिब जी) द्वारा की गई थी एक ऐसा स्थान जहाँ आध्यात्मिक शिक्षाएँ, भीतर का अनुशासन, और सच्चे साधना मार्ग को अपनाया जाता है।
यहाँ की शिक्षाओं की नींव सिमरन (ध्यान), सत्संग (आध्यात्मिक प्रवचन), और सेवा (निस्वार्थ कर्म) पर आधारित है।
1998 में मैनेजर साहिब जी के महासमाधि के बाद, यह आध्यात्मिक जिम्मेदारी परम संत बहादुर चंद जी (प्रेमपूर्वक “वकील साहिब” जी) ने सँभाली।
उन्होंने अत्यंत विनम्रता और समर्पण से इन्हीं शिक्षाओं को आगे बढ़ाया और
2024 तक हज़ारों साधकों को मार्गदर्शन दिया।
वर्तमान में महाराज बीरेंद्र सिंह जी डेरा जगमालवाली के जीवित गुरु के रूप में साधकों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
उनके नेतृत्व में डेरा आज भी सिमरन, सदाचार, और संतों द्वारा दी गई अमूल्य शिक्षाओं के प्रति समर्पित है।
Born in 1915 in Punjab, Param Sant Gurbakhsh Singh “Manager Sahib” Ji was a beacon of divine wisdom and spiritual enlightenment. After receiving initiation from Hazoor Maharaj Sawan Singh Ji, his deep devotion and disciplined life led him to become a close disciple of Param Sant Mastana Shah Balochistani Ji. In 1966, he laid the foundation of Dera Jagmalwali, transforming it into a sanctuary of spiritual growth, meditation, and selfless service. His teachings continue to illuminate the path of seekers, guiding them toward self-realization and divine connection.
परम संत गुरबख्श सिंह जी, जिन्हें श्रद्धा से “मैनेजर साहिब” जी कहा जाता है,
का जन्म 21 नवम्बर 1915 को गाँव किलाना, फतेहगढ़ साहिब (पंजाब) में हुआ।
उनके पिता का नाम सरदार चनन चिन्न जी और माता का नाम श्रीमती हरनाम कौर जी था।
माता के बचपन में ही स्वर्गवास हो जाने के बाद, उनका पालन-पोषण मौसी ईश्वर कौर जी ने ननिहाल में किया।
उनके नाना मुनशी नारायण सिंह जी, हज़ूर महाराज सावन सिंह जी (डेरा ब्यास) के घनिष्ठ मित्र थे और आध्यात्मिक रूप से उनसे गहरा संबंध रखते थे।
सन 1928 में, मात्र 13 वर्ष की आयु में, उन्होंने हज़ूर महाराज सावन सिंह जी से नाम दीक्षा प्राप्त की।
उन्होंने D M कॉलेज, मोगा से F.A. की शिक्षा पूर्ण की।
इसके बाद नाभा राज्य में वन अधिकारी के रूप में सेवा दी,
और फिर Delhi Cloth Mills में मैनेजर के पद पर कार्य किया।
सन् 1947 में, उनका स्थानांतरण बठिंडा से सिरसा हुआ।
वहीं पर उनका संपर्क परम पूज्य संत शाह मस्ताना बलोचिस्तानी जी से हुआ,
जो उस समय राधा स्वामी सत्संग घर, सिरसा में निवास कर रहे थे।
शाह मस्ताना जी की उपस्थिति और शिक्षाओं से गहराई से प्रभावित होकर, गुरबख्श सिंह जी उनके एक समर्पित शिष्य बन गए और अपने गुरु के मार्गदर्शन में सिमरन की आंतरिक साधना में लीन हो गए। वर्ष 1948 में, पूज्य परम संत मस्ताना जी ने हरियाणा के सिरसा में डेरा सच्चा सौदा की नींव रखी। फरवरी 1949 में, शाह मस्ताना जी ने उन्हें रूहानियत (आध्यात्मिक चेतना) के आध्यात्मिक आशीर्वाद से सम्मानित किया और उन्हें “प्रबंधक” की उपाधि दी – एक ऐसा नाम जो उनके जीवन भर उनके साथ जुड़ा रहा।
इसके बाद उन्होंने अपनी नौकरी त्याग दी और पूरी तरह सेवा और सिमरन में जीवन समर्पित कर दिया।
18 अप्रैल 1960 को, शाह मस्ताना जी के शब्द रूप में विलीन होने से पहले,
उन्होंने डेरा की सम्पूर्ण जिम्मेदारी मैनेजर साहिब जी को सौंप दी।
उस समय उनकी आयु 45 वर्ष थी।
समय के साथ डेरा की परिस्थितियाँ बदलीं,
और उन्हें वहाँ से अलग होना पड़ा।
लगभग 6 वर्षों तक, उन्होंने विभिन्न स्थानों पर साधना, सेवा और सिमरन में समय व्यतीत किया।
18 फरवरी 1966 को, उन्होंने डेरा जगमालवाली की स्थापना की —
जो आज एक विख्यात आध्यात्मिक केंद्र के रूप में जाना जाता है।
यह डेरा सच्चे साधकों को सिमरन, सेवा, सत्संग, और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
उनके नेतृत्व में डेरा ने रूहानियत, विनम्रता और समर्पण के मूल्यों को सशक्त रूप से स्थापित किया।
30 जुलाई 1998 को, परम संत गुरबख्श सिंह जी शब्द रूप में विलीन हो गए।
इसके पूर्व 1996 में, उन्होंने परम संत बहादुर चंद “वकील साहिब” जी को
अपना उत्तराधिकारी और आध्यात्मिक मार्गदर्शक नियुक्त किया —
ताकि यह रूहानी परंपरा सदा प्रकाशमान बनी रहे।
Born in 1944 in Chautala, Haryana, Param Sant Bahadur Chand “Vakil Sahib” Ji devoted his life to spiritual service, Simran, and Seva. As a disciple of Param Sant Gurbakhsh Singh “Manager Sahib” Ji, he embodied humility, wisdom, and divine love. His relentless dedication to meditation and ethical living uplifted countless souls, reinforcing the values of inner peace, devotion, and self-discipline. His spiritual leadership ensured that the teachings of the saints and the mission of Dera Jagmalwali continued to flourish, touching the lives of many across generations.
परम संत बहादुर चंद “वकील साहिब” जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वर भक्ति, सिमरन (ध्यान), और निस्वार्थ सेवा (सेवा) को समर्पित किया।
वे परम संत गुरबख्श सिंह “मैनेजर साहिब” जी के शिष्य थे,
और उनके बताए मार्ग पर चलते हुए उन्होंने विनम्रता, भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान के मूल्यों को अपने जीवन में पूर्ण रूप से अपनाया।
उनकी सरलता और समर्पण ने अनगिनत साधकों को धर्म और आंतरिक शांति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
डेरा जगमालवाली में उनके नेतृत्व ने प्रेम, एकता और आत्मिक जागरूकता के संदेश को और मजबूत किया जहाँ हर आत्मा को परम सत्य की ओर बढ़ने का अवसर मिला।
उनका जीवन इस बात का जीवंत उदाहरण है कि जब इंसान सच्चे मार्गदर्शन और भक्ति के साथ जीवन जीता है, तो वह न सिर्फ खुद रोशन होता है, बल्कि दूसरों के जीवन में भी प्रकाश फैलाता है।
महाराज बीरेंद्र सिंह जी का जन्म 21 नवम्बर 1979 को हुआ।
उनके पिताजी का नाम श्री मियां सिंह ढिल्लों जी और माताजी का नाम श्रीमती संतोष देवी जी है।
वो सन 1993 में, मात्र 14 वर्ष की आयु में, पहली बार डेरा जगमालवाली पधारे। उसी वर्ष उन्हें पूज्य परम संत “मैनेजर साहिब” जी से नामदान की पवित्र दीक्षा प्राप्त हुई।
नामदान प्राप्त करने के बाद, उन्होंने घर वापस जाने के बजाय डेरा में ही रहना प्रारंभ कर दिया और पूज्य मैनेजर साहिब जी के मार्गदर्शन में साधना और भजन-स्मरण में लीन हो गए।
डेरा में रहते हुए ही उन्होंने B.A. की पढ़ाई पूरी की और बाद में चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय से L.L.B. की डिग्री प्राप्त की।
वे नियमित रूप से भजन (शब्द) का गायन पूज्य मैनेजर साहिब जी और पूज्य वकील साहिब जी के समक्ष किया करते थे।
पूज्य मैनेजर साहिब जी के शब्द रूप में विलीन होने के बाद, जब पूज्य वकील साहिब जी ने गुरु गद्दी को संभाला, तो उन्होंने पूरे 26 वर्षों तक पूज्य वकील साहिब जी के निज सहायक एवं सेवक के रूप में सेवा की और हर आदेश में पूर्ण समर्पण के साथ कार्यवाहन किया।
2002 में, उन्हें डेरा ट्रस्ट का ट्रस्टी नियुक्त किया गया और डेरा की प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ भी उन्हें सौंपी गईं।
पूज्य वकील साहिब जी जब भी देश-विदेश के दौरे पर जाते, तो महाराज बीरेंद्र सिंह जी उनके साथ ही रहते और संपूर्ण व्यवस्था की जिम्मेदारी भी निभाते।
1 अगस्त 2024 को, पूज्य वकील साहिब जी शब्द रूप में विलीन हुए।
उससे लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व, 2023 में, उन्होंने 44 वर्ष की आयु में महाराज बीरेंद्र सिंह जी को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
2024 में, जब महाराज बीरेंद्र सिंह जी ने गुरु गद्दी संभाली, तब वे 45 वर्ष के थे।
आज, पूज्य वकील साहिब जी के आदेशों और सिद्धांतों के अनुसार, महाराज बीरेंद्र सिंह जी रूहानी शिक्षाओं का प्रचार और विस्तार कर रहे हैं,
सच्चे साधकों को नामदान की पावन दीक्षा प्रदान कर रहे हैं, और डेरा की संतमत परंपरा को प्रेम, सेवा और विनम्रता के साथ आगे बढ़ा रहे हैं।
Finding Peace at Dera Jagmalwali Changed My Life
“The teachings of Maharaj Ji helped me overcome anger and negativity. Simran has brought unparalleled peace to my life.”
© DeraJagmalwali, 2025
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