संत बहादुर चंद (वकील साहिब जी)

संत बहादुर चंद, वकील साहिब जी

पूज्य परम संत बहादुर चंद जी, जिन्हें वकील साहिब जी के नाम से जाना जाता है, का जन्म 10 दिसंबर 1944 को हरियाणा राज्य के जिला सिरसा के गांव चौटाला में हुआ था। उनके पिता श्री मणीराम बिश्नोई (सिहाग) और माता श्रीमती मनोहरी देवी थीं।

जब वे स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, तब उनके एक अध्यापक ने कहा – “ये बच्चा बहुत बड़ी आत्मा है।” बचपन से ही उनका झुकाव ध्यान और राम नाम की ओर था। एक बार बीमार होने पर किसी ने उन्हें “राम राम” जपने की सलाह दी। जब उन्हें इससे आराम मिला तो उन्होंने सोचना शुरू किया कि ये राम कौन है, ये हमारे भीतर कैसे है, और इससे हमें कैसे ज्ञान प्राप्त होता है।

उनके माता-पिता ने उन्हें खेती में लगाना चाहा, पर उनका मन राम की खोज में ही लगा रहा। वे गांव के हनुमान मंदिर में रोज़ कई बार जाया करते थे और ‘हनुमान चालीसा’ भी खरीदी। बाद में उन्होंने हिसार के दयानंद कॉलेज में पढ़ाई की, जहाँ वे आर्य समाज प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष बने। वे हर हफ्ते हवन करते और सत्यार्थ प्रकाश जैसे ग्रंथों का अध्ययन करते, लेकिन उन्हें आत्मिक शांति नहीं मिलती थी।

फिर उन्होंने चंडीगढ़ से लॉ की पढ़ाई की और 1968 में वकालत शुरू की। एक दिन गांव चौटाला के सरदार बच्चन सिंह जी ने उन्हें ‘गुरमत सिद्धांत’ नाम की पुस्तक दी। उस किताब को पढ़कर वे बेहद प्रभावित हुए और फिर धीरे-धीरे उन्हें संत मस्ताना बलोचिस्तानी जी और संत मैनेजर साहिब जी के बारे में जानने का अवसर मिला। उन्होंने जाना कि बिना सतगुरु के सच्चे मार्ग की पहचान नहीं हो सकती।

एक दिन सरदार बच्चन सिंह जी उन्हें डेरा जगमालवाली लेकर गए, जहाँ उन्होंने संत मैनेजर साहिब जी का सत्संग सुना – “इस गुफा में अखुट भंडारा।” उस सत्संग के बाद जब मुलाक़ात हुई तो सरदार बच्चन सिंह ने उन्हें “वकील साहब” कहकर परिचय करवाया। तब मैनेजर साहिब जी ने हँसते हुए कहा – “हमें भी एक वकील की ज़रूरत थी।”

इसके बाद वकील साहब डेरा में आना-जाना करने लगे। वे अपने गांव चौटाला से पैदल करीब 52 किलोमीटर चलकर डेरा आते थे। वे सेवा में भी जुड़े – जैसे खेतों की सेवा, सत्संग के दौरान लेखन कार्य आदि। एक बार उन्होंने डेरा में रहने की इच्छा जताई तो मैनेजर साहिब जी ने कहा – “चार साल इंतजार करो।” उन्होंने पूरे चार साल सेवा और सुमिरन करते हुए बिताए।

चार साल बाद उन्हें डेरा में स्थायी रूप से रहने की अनुमति मिली। वहां वे बुक स्टोर के इंचार्ज बने और साथ ही रात में खेतों में सेवा भी करते। धीरे-धीरे उन्हें मैनेजर साहिब जी के अनुभव, उपदेश और संत मस्ताना जी की साखियों को लिखने की जिम्मेदारी भी मिली। मैनेजर साहिब जी ने खुद कहा था – “सतगुरु तुम्हारे साथ है।”

1991 में पहली बार वकील साहिब जी ने मंडी डबवाली में सत्संग किया। वहां लोगों को ऐसा अनुभव हुआ मानो स्वयं मैनेजर साहिब जी उनके बीच मौजूद हों। इसके बाद वे हरियाणा और पंजाब के कई हिस्सों में सत्संग करने लगे।

1998 में जब संत मैनेजर साहिब जी ने देह त्यागने से पहले सारी संगत को कहा – “अब वकील साहब डेरा जगमालवाली को संभालेंगे।” और उसी दिन से पूज्य परम संत वकील साहब जी गद्दीनशीन बने।

वे हमेशा कहते हैं कि – “नाम, सुमिरन और सत्संग ही वो मार्ग हैं जो हमें ज़िंदा राम तक पहुँचाते हैं, जो हर एक के भीतर मौजूद है। सतगुरु सिर्फ नाम लेने वाले की नहीं, बल्कि उसके परिवार की भी रक्षा करते हैं।”

डेरा जगमालवाली के आध्यात्मिक गुरु (1998 – 2024)

परम संत बहादुर चंद जी, जिन्हें श्रद्धा और प्रेम से वकील साहिब जी के नाम से जाना जाता है, जन्म 31 दिसंबर 1943 को गाँव चौटाला, तहसील डबवाली, ज़िला सिरसा (हरियाणा) में एक सरल और कृषक परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम श्री मणिराम जी और माता का नाम श्रीमती मनोहरी देवी जी था।

बाल्यकाल से ही उनके भीतर राम (सच्चे सतगुरु) के दर्शन की तीव्र और अटल लालसा थी एक शांत आंतरिक पुकार, जो उनके पूरे जीवन की दिशा तय करती चली गई।

उन्होंने गंभीरता और लगन के साथ शिक्षा प्राप्त की दयानंद कॉलेज, हिसार से B.A. और उसके बाद पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से L.L.B. की डिग्री हासिल की।

शिक्षा पूर्ण कर वे डबवाली की अदालत में वकालत करने लगे। परंतु, जीवन की दिनचर्या और पेशेवर उपलब्धियों के बीच भी, एक आंतरिक मार्गदर्शन  उन्हें किसी गहरे और शाश्वत सत्य की ओर बुलाती रही।

1972 में, जब वे 29 वर्ष के थे, उनका संपर्क परम संत गुरबख्श सिंह जी (मैनेजर साहिब जी) से हुआ जो डेरा जगमालवाली के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु थे।

उसी वर्ष उन्हें मैनेजर साहिब जी से नामदान (आध्यात्मिक दीक्षा) प्राप्त हुई।
यह अनुभव उनके जीवन में एक निर्णायक मोड़ बन गया।

अगले कुछ वर्षों में उन्होंने सिमरन (ध्यान) और सेवा (निस्वार्थ कर्म) में गहनता और समर्पण के साथ आगे बढ़ना शुरू किया।

1977 में, उन्होंने वकालत का कार्य त्याग दिया और डेरा जगमालवाली को ही अपना स्थायी निवास बना लिया। वहां उन्होंने विनम्रता, अनुशासन, और पूर्ण समर्पण के साथ साधना का जीवन जीना आरंभ किया।

उनकी दिनचर्या नित्य सिमरन, सेवा, और गुरु के आदेशों के पालन में समर्पित रही उनकी उपस्थिति स्वयं शब्द और भक्ति की जीवंत मिसाल बन गई।

1998 में, मैनेजर साहिब जी के शब्द रूप में विलीन होने के पश्चात,
55 वर्ष की आयु में, बहादुर चंद जी ने गुरु गद्दी संभाली।

उन्होंने डेरा की परंपरा को पूर्ण समर्पण और शांत नेतृत्व के साथ आगे बढ़ाया। सच्चे साधकों को नामदान देना, आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करना, और सहज, सादगीपूर्ण जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करना —
उनके जीवन का आधार रहा।

उनका व्यक्तित्व आध्यात्मिक स्थिरता, करुणा, और आंतरिक शक्ति से परिपूर्ण था, और उनके नेतृत्व में डेरा एक सच्चे आत्मिक साधना स्थल के रूप में प्रतिष्ठित रहा।

2015 में, संत परंपरा के अनुरूप, उन्होंने महाराज बीरेंद्र सिंह जी को लिखित वसीयत द्वारा अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
यह वसीयत 2023 में विधिवत पंजीकृत की गई, ताकि डेरा का मार्गदर्शन भविष्य में भी उनकी भावनाओं और आदेशों के अनुरूप चलता रहे।

1 अगस्त 2024 को परम संत बहादुर चंद जी शब्द रूप में विलीन हो गए।

उनका जीवन अडिग भक्ति, अनुशासन, और आध्यात्मिक शांति का प्रतिरूप रहा और उनकी विरासत केवल उपदेशों में नहीं, बल्कि उन हज़ारों साधकों के जीवन में जीवित है, जिन्हें उन्होंने प्रेमपूर्वक मार्ग दिखाया और आत्मा के प्रकाश की ओर प्रेरित किया।