परम संत गुरबख्श सिंह जी (मैनेजर साहिब)

परम संत गुरबख्श सिंह जी, मैनेजर साहिब
डेरा जगमालवाली के संस्थापक | (1915 – 1998)
परम संत गुरबख्श सिंह जी, जिन्हें प्रेम और श्रद्धा से (मैनेजर साहिब जी) के नाम से जाना जाता है, का जन्म 21 नवम्बर 1915 को गाँव सलाना, ज़िला फतेहगढ़ साहिब (पंजाब) में हुआ।
उनके पिता का नाम सरदार चनन सिंह जी और माता का नाम सरदारनी हरनाम कौर जी था। दोनों ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे, और उनका जीवन आध्यात्मिक मूल्यों से भरा हुआ था जिसका गहरा प्रभाव बचपन से ही गुरबख्श सिंह जी पर पड़ा।
बाल्यावस्था में माताजी के देहांत के पश्चात, उनका पालन-पोषण मौसी सरदारनी ईश्वर कौर जी ने ननिहाल में किया।
उनके नाना जी, मुनशी नारायण सिंह जी, डेरा ब्यास के हज़ूर महाराज सावन सिंह जी के करीबी भक्त और मित्र थे। यही संबंध उन्हें प्रारंभ से ही संतों की संगति और रूहानी वाणी से जोड़ता चला गया।
सन 1928 में, जब वे मात्र 13 वर्ष के थे, उन्हें हज़ूर महाराज सावन सिंह जी से नामदान (आध्यात्मिक दीक्षा) प्राप्त हुई यह वही क्षण था जिसने उनके जीवन की दिशा निर्धारित कर दी।
उन्होंने डी.एम. कॉलेज, मोगा से F.A. तक शिक्षा प्राप्त की।
इसके पश्चात उन्होंने नाभा राज्य में वन अधिकारी के रूप में कार्य किया,
और बाद में दिल्ली क्लॉथ मिल्स में मैनेजर के रूप में सेवा दी।
1947 में, जब उनका स्थानांतरण बठिंडा से सिरसा हुआ,
तब वे परम संत शाह मस्ताना बलोचिस्तानी जी के सान्निध्य में आए,
जो उस समय राधा स्वामी सत्संग भवन, सिरसा में निवास कर रहे थे।
शाह मस्ताना जी की उपस्थिति और वाणी ने गुरबख्श सिंह जी को गहराई से आकर्षित किया, और वे उनके एकनिष्ठ शिष्य बन गए।
1948 में, जब शाह मस्ताना जी ने डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की,
तो गुरबख्श सिंह जी ने भी अपनी सांसारिक नौकरी त्यागकर पूर्णतः सेवा और सिमरन को समर्पित कर दिया।
फरवरी 1949 में, शाह मस्ताना जी ने उन्हें रूहानियत का आशीर्वाद प्रदान किया और उन्हें (मैनेजर) की आध्यात्मिक उपाधि दी जो उनके साथ जीवन भर जुड़ी रही।
18 अप्रैल 1960 को, जब शाह मस्ताना जी शब्द रूप में विलीन हुए,
तो उन्होंने मैनेजर साहिब जी को डेरा सच्चा सौदा की पूर्ण ज़िम्मेदारी सौंप दी।
लेकिन जब डेरा में परिस्थितियाँ बदलने लगीं, तो उन्होंने बिना कोई विवाद या विरोध किए, चुपचाप छह वर्षों तक विभिन्न स्थानों पर सेवा और सिमरन में जीवन बिताया।
18 फरवरी 1966 को, आंतरिक आदेश और रूहानी दृष्टि से प्रेरित होकर, उन्होंने शाह मस्ताना बलोचिस्तानी आश्रम की स्थापना की,
जो आज डेरा जगमालवाली के नाम से प्रसिद्ध है।
ईंट और मिट्टी से नहीं, बल्कि भक्ति, अनुशासन, और अंतर की ज्योति से बना यह डेरा, आज हजारों साधकों के लिए सत्य की खोज और रूहानियत का आश्रय बना हुआ है।
मैनेजर साहिब जी की शिक्षाएँ भीतर के परमात्मा की अनुभूति पर केंद्रित थीं। उन्होंने हमेशा सादगी, करुणा, और आत्म-अनुशासन पर बल दिया —
और साधकों को सिमरन (ध्यान), सत्संग, और सेवा के माध्यम से जीवन रूपांतरित करने की प्रेरणा दी।
18 फरवरी 1996 को, डेरा की स्थापना के ठीक 30 वर्षों बाद, उन्होंने परम संत बहादुर चंद जी को पंजीकृत वसीयत द्वारा अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
30 जुलाई 1998 को, मैनेजर साहिब जी शब्द रूप में विलीन हो गए।
परंतु उनका आध्यात्मिक प्रकाश, उनका दृढ़ संकल्प, और उनकी जीवंत शिक्षाएँ आज भी डेरा जगमालवाली के मूल आधार के रूप में जीवित हैं।
उनका जीवन आज भी सत्य की तलाश करने वाले हर साधक के लिए
प्रेरणा, शक्ति और आंतरिक मार्गदर्शन का स्रोत बना हुआ है।
परम संत गुरबख्श सिंह जी का जन्म 21 नवम्बर 1915 को पंजाब के फतेहगढ़ ज़िले के गाँव सलाना में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार चन्नण सिंह जी और माता का नाम श्रीमती हरनाम कौर था। दोनों ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे और हज़ूर महाराज सावन सिंह जी से नामदान ले चुके थे। उनकी मां हर रोज़ सुबह 3 बजे उठकर नहाकर भजन-सुमिरन करती थीं। ऐसे वातावरण में पले-बढ़े गुरबख्श सिंह जी शुरू से ही आध्यात्मिक झुकाव वाले थे। हज़ूर महाराज सावन सिंह जी ने ही उनका नाम “गुरबख्श सिंह” रखा था।
बचपन में ही उनकी मां का स्वर्गवास हो गया और फिर उनकी मौसी श्रीमती ईश्वर कौर ने उन्हें बेटे की तरह पाला। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई अपने गांव और मामा के गांव महिमा सिंह वाला में की, फिर खन्ना और मोगा से आगे की पढ़ाई पूरी की। इंटरमीडिएट पढ़ाई के दौरान ही उनका विवाह बीबी गुरदियाल कौर से हुआ। उन्हें चार बेटे हुए।
13 साल की उम्र में उन्हें हज़ूर महाराज सावन सिंह जी से नामदान मिला। 1939 में उन्होंने फॉरेस्ट गार्ड की नौकरी शुरू की और मेहनत के बल पर प्रमोट होकर फॉरेस्टर ऑफिसर बन गए। लेकिन निजी कारणों से यह नौकरी छोड़कर दिल्ली क्लॉथ मिल में मैनेजर की नौकरी करने लगे।
1947 में जब वे सिरसा में डी.सी.एम. स्टोर के मैनेजर थे, तब उनकी मुलाकात परम संत मस्ताना शाह बलोचिस्तानी जी से हुई। यह एक बहुत ही अहम मोड़ था। फरवरी 1949 में, मस्ताना जी ने उन्हें गहरे ध्यान में बैठाकर सावन शाह की हाज़िरी में आध्यात्मिक वरदान दिया और उन्हें “मैनेजर साहिब” की उपाधि दी।
12 वर्षों तक उन्होंने मस्ताना जी की सेवा की (1948 से 1960 तक)।
14 अप्रैल 1960 की रात मस्ताना जी ने संगत से कहा कि अब से डेरे का कार्य मैनेजर साहिब संभालेंगे। 18 अप्रैल को मस्ताना जी ने शरीर त्याग दिया और फिर डेरे में परिस्थितियाँ बदल गईं। विरोधी परिस्थितियों के कारण मैनेजर साहिब को डेरे को छोड़ना पड़ा और उन्होंने कई वर्षों तक चोरमार, मलोट, मोहम्मदपुर रोही आदि स्थानों पर संगत की सेवा की।
1966 में उन्होंने जगमालवाली में मस्ताना शाह बलोचिस्तानी आश्रम की नींव रखी।
धीरे-धीरे वहां कमरों का निर्माण हुआ और आश्रम एक आध्यात्मिक केंद्र बन गया। 1989 में “सच्चा सौदा रूहानी सत्संग ट्रस्ट” दिल्ली में रजिस्टर्ड हुआ और 1990 में दिल्ली के केशवपुरम में जहाजवाले डेरा का निर्माण हुआ।
मैनेजर साहिब ने संतमत की शिक्षाओं को सरल और स्पष्ट भाषा में प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने कई आध्यात्मिक किताबें लिखीं जैसे:
डोली हुई दुनिया का सहारा (भाग 1 से 4)
सत्संगी का सहारा,
सच्चा धर्म और मांस-शराब,
मस्ताना जी का जीवन उपदेश आदि।
इन पुस्तकों ने लाखों लोगों की सोच को बदल दिया और आज भी अनेक लोगों को मार्गदर्शन मिल रहा है।
30 जुलाई 1998 को मैनेजर साहिब जी ने 83 वर्ष की आयु में शरीर त्याग दिया।
उन्होंने अपने उत्तराधिकारी “वकील साहिब जी” को आध्यात्मिक सेवा सौंप दी और स्वयं अनामी लोक में विलीन हो गए।