यह एक पवित्र दीक्षा होती है जो एक जिंदा गुरु से मिलती है, जिसमें शिष्य को एक अंतर मुखी नाम (मंत्र) दिया जाता है। इसी के माध्यम से साधना शुरू होती है और आत्मा को परमात्मा की ओर अंदर की यात्रा पर लगाया जाता है।
यह एक शांत और एकाग्र ध्यान की विधि है जिसमें दिए गए नाम (मंत्र) का मन में बार-बार दोहराया जाता है। इसका अभ्यास मन को स्थिर और अंदर की रौशनी व शब्द को अनुभव करने में मदद करता है।
एक आध्यात्मिक सभा है जहाँ संत साधको को संतमत का संदेश देते हैं, भजन-शब्द गाए जाते हैं और सभी साधक मिलकर ध्यान करते हैं और साधकों को अंतरिक ऊर्जा का अहसास और मार्गदर्शन मिलता है।
यह संतों द्वारा सिखाया गया वह मार्ग है जिसमें सीधी आत्मिक अनुभूति पर ज़ोर दिया जाता है—अंदर की रौशनी और शब्द के ध्यान के माध्यम से परमात्मा से जुड़ने का रास्ता बताया जाता है।
यह शब्द तब प्रयोग होता है जब कोई महापुरुष या गुरु इस संसार से शरीर रूप से विदा लेते हैं और आत्मिक रूप में रौशनी में लीन हो जाते हैं। इसका अर्थ है—सतगुरु का आध्यात्मिक रूप में निरंतर उपस्थित रहना।
© DeraJagmalwali, 2025
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